चंचल मन की एक खूबी यह है, की उसमे शर्म की गुंजाईश ज़रा कम ही रहती हैं. तो फिर क्या था! हम भी मस्तमौला बन अनाप शनाप बकते गए, और उसे लोग शेरो-शायरी कहते गए! अब आपकी वारी हैं परेशान होने की! पढ़ ही लीजिये कुछ लब्ज़ गम और खुशियों की…….
Here you go…
खुली रख किताब ज़िन्दगी की, ए मेरे दोस्त
वरना पन्नो में छिपी तमन्नाएं सांस कैसे लेगी
हवा का रुख मोर कर, जी लेना ज़िन्दगी
वरना दुख को जितने की एहसास कैसे होगी
बिकते देखा झूठे सुख को
जिसमे न थी गहरायी
जज्बातों की हालत देख
यूँ ही आँखें भर आयी
बिकते देखा रिश्ते नाते
डोर बड़े कमजोर निकले
बाजार में ऊँची बोली लगकर
रिश्तों के दृढ़ नींव पिघले
दूर खडा था यारी मेरा
मुँह पर उसकी थी मुस्कान
टूटे फूटे वज़ूद समेटे
कराया खुद मुझसे पहचान
खुंदाई की खुदाई में, बिता दी ज़िन्दगी
ना शांति,ना खुदा से रूबरू हुए
थके हारे जब ज़िन्दगी को चले कोसने
प्याला ज़िन्दगी का लेकर, दोस्त रूबरू हुए
एक चुस्की उस जाम की,
झुकी सी कद को तान दिया
मन के जंगल से उभरे,
और खुद को ही सम्मान दिया
अहंकार को जाते देखा
खुद को सिंहासन पर पाया
शांति को दिल में बसते देखा
यारी में जन्नत पाया
इल्म की तालीम में जिंगदी गुज़र गयी
परवरदिगार के रहमत से दुनिया संवर गयी
जो भी कुछ बाकि था ए बन्दे
दोस्ताना से उसकी भरपाई हो गयी
जीवन पथ में खाकर ठोकर, धुन्दला लगे जब आसमान
बुलंद अरमानों के पंखों पर, जीवन भरती हैं उड़ान
उम्र की थी नम्र भाषा
खोज मगर थी बेतहाशा
पल जो खा रहीं थी गोंते
दलदलों में डूबती आशा
पल को बचपना ही भाया
जैसे कोई फरिश्ता आया
उम्र को मिली जो शांति
मानो जीवन ने पंख पाया
शब्दों के इन शोरों में, जज्वात अक्सर खो जाती हैं
सच और झूट को पढ़ते पढ़ते, बुद्धि गुम हो जाती है
दिल के कान, तेज़ हैं लेकिन, सुन लेती निशब्द वह धुन
दिल से जो निकली वह पाक, दिल बाग़ बाग़ कर जाती हैं
दुश्मन से मत डर ए बन्दे
उसे खोने का गम नहीं
खौफ तो उस वीरान ज़िन्दगी से है
जो दोस्त खोने से होता है
क़हक़हे गूंज रही थी ज़िन्दगी की
लेकिन, मौत का ठहाका बुलंद निकला
जीनेवाले यूँ ही मूर्झा गए
जैसे जीते जी जनाजे का बुलावा हैं
मेरे दिल की दर्द दबी ही रही
मुझे बस रब ने तड़पते देखा हैं
हम तन्हाईं में बैठे रोते रहे
लोगों ने बस महफ़िल में हँसते देखा है
तमन्नाओं का क्या, वो तो बस टपक पड़ते हैं
उन्हें पूरी करने का बोझ तो अहसानमंद ही उठता हैं
देखीं हैं दरार मैंने आज आईने में
पता नहीं शीशा टुटा या मैं
टुटा ही खुश हूँ, बिखरा तो नहीं
ज़िन्दगी के सहारे, जुड़ भी जाऊंगा
खुशनसीब हैं वो, जिसने गुलाब को हँसते देखा
उन्हें दुःख खिलते हुए दिखा
सुख की हसी तो सब हँसते हैं
मुकम्मल वही, जिसने गम में हंसना सीखा
बुरी आदत से समझौता फिर भी हैं मुमकिन
मगर बुरी नियत को झेल न सके
महफ़िल की उम्र अगर हो भी कमसिन
दोस्तों के जज्बातों से खेल न सके
अंधेर घर में कहाँ, दिल में बसता हैं
दिया का उजाला भी तो, मन में सजता हैं
फ़रिश्तें तो सिर्फ राहगीर का किरदार निभाएं
अच्छाई का दिया लिए, अँधेरा दूर भगाएं
गम की गहराईयों से तो ख़ुशी की उचाइयां बेहतर
कम से कम दिख तो जाया करती हैं!
गहराईयों को नापते नापते पैमाना खो बैठे
लेकिन खुशियों की चढ़ाई चढ़ते थके नहीं
And some more
अचरज में हमने खुदा से पूछ ही डाला
बाकि फरिस्तों को कैद क्यों कर रखा?
ज़िल्लत अब भी हैं इस दुनिया में
बाकियों को भेजो, तांकि बन पाए सखा
घबराहट की आहट तो तब सुनाई देती है
जब तपती धुप में बंदा वीरान हो
दोस्ती के सुहानी छावों का जो आसरा मिल जाये
दर्द की क्या मज़ाल की वोह सुकून छीन ले
सराहने वाले रहे सर आँखों पर
क्या मजाल की कोई आंच आए!
दोस्तों से कुर्बत जन्नत से कम नहीं
इस नाचीज़ को भ्रम ही भाये
नाचिज़ों पे रहम, इंसान का करम
वाहवाही में बहना, मूर्खों का धरम
कोयला तो कोयला ही हैं, भष्म हो जाये
कांच का टुकड़ा हूँ, मुझपे करे रहम
फरिस्तों की बोलती बन्ध करना, सराहनीय नहीं
उजाले को ढकने की कोशिश नाकाम ही होगी
ए फरिस्ते, ए मेरे यार, खुली रखना मन की द्वार
इस नाचीज़ को उजाले की बहुत ज़रुरत हैं
मिज़ाज़ का क्या है, अब शरीफ तो तब उखरि
शायराना फन के काबिल हम कहाँ
बस लिख डालते हैं सोच की दास्ताँ
आप के तारीफों से मिलती हैं जहाँ
वाह वाहों की कशिश अक्सर कोशिश में बसती है
कामयाबी तो सिर्फ हांथी के दांत हैं
खाने के और, दिखाने के कुछ और
मौसम की शमा, हवा के झोंको से बँधती है
वक़्त की मौसिक़ी, दोस्तों के आवाज़ में गूंजती है
कुछ वक़्त हमे भी नसीब हो दोस्त
तांकि मैसीकी के झोंको का लुत्फ़ हम भी उठाएं
शमा ऐ महफ़िल बन शिकार पर निकले
कई घायल हुए, तो कई कातिल निकले
आदत से मजबूर जब घर को चले
घर का दायरा, सबसे महफूज़ निकले
कामयाबी की आग़ाज़, उम्मीदों ने की
किसी का उड़ान था, तो किसी की गोताखोरी
हमने तो इंतज़ार में वक़्त जाया किया
कदरदान ही रह गए, वो भी चोरी चोरी
And Yet more
हस्ती कदर के मौताज नहीं
वो अपने धुन में रहते हैं
मुझ नाचीज़ की औकात नहीं
इसलिए मुझे चींटी कहते हैं
वक़्त का तक़ाज़ा है
दिवस दिवस खेले
कभी माँ को खिंच लाये
कभी प्यार को झेले
मौताज नहीं यार कोई दिवस का
हर लम्हे में वह छाये
जीवन का कोई दिवस नहीं होता
यारी हरदम लहराए
बेहतरी की उम्मीद में, बदतर हुयें अंदाज़
अमन के गुंजाईश ने, घोंट दी आवाज़
अब तो इंतज़ार हैं उस फरिस्ते की
खौफ हटाकर जो बनें जांबाज़
यारों की यारी, मुर्दों में जान डाल दे
हौसला ये प्यारी, इंसान में पंख डाल दे
शायरी के दो लब्ज़ क्या चीज़ हैं
नाकाम के सर, कामयाबी का ताज़ डाल दे
रिश्तों ने ग़ज़ल छेड़ी, हम कायल हो गए
यारों के जज्बातों से, हम घायल हो गए
इन घावों की दवा न तलाशना मेरे दोस्त
यह तो मेरे मन-मंदिर के छनकते पायल हो गए
ज़िन्दगी ने मुस्कुराते हुए कहा
“उस्ताद तो हम भी न थे
तेरी कोशिशों से तो बस अभी मेरी तालीम मुकम्मल हुई”
ज़िन्दगी भी अनोखी है, क्या क्या गुल खिलाती हैं
कभी मंज़िल पड़ाव, और कभी पड़ाव मंज़िल बन जाती है
हुनर को तराशा आपकी पारखी निगाहों ने
इन लब्ज़ों को सजाया यकीनी जज्बातों ने
टूटे फूटे बोलों की क्या मज़ाल होती
अगर न की होती इज़हार, आप के जुबानों ने
Is there anything left? Just amazing… I am speechless… Behind every creation of yours there’s a ray of hope…. Strong mind and spontaneity which I love… Which gives positivity….
Thank you so much. I am just trying to be myself, not sure, if that warrants such lofty praise!